Description
ये कहानी है । पà¥à¤¯à¤¾à¤° की गहराइयों की । बेवफाई की । दोसà¥à¤¤à¥€ की । शतà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ की । जो की आप को किताब से जोड़ती है । ये आपको पà¥à¤¯à¤¾à¤° में जलते राघव से मिलाती है ।और निधि के सचे पà¥à¤¯à¤¾à¤° की कहानी है ये। लेखक आप को वंश के अहंकारी सवरूप से à¤à¥€ मिलाता है। और ये सचà¥à¤šà¥€ दोसà¥à¤¤à¥€ की à¤à¥€ कहानी है ।
इस कहानी में शहर के साथ आप को गांव की मिटà¥à¤Ÿà¥€ से ले कर उनकी जाती पà¥à¤°à¤¥à¤¾ और उसके ढोंग को à¤à¥€ ये दरà¥à¤¶à¤¾à¤¤à¥€ है । उनके रीति रिवाज à¤à¥€ इस कहानी में मिलते है । साथ में छोटी जाती के अलग मंदिर है और बड़ी जाती के अलग मंदिर है । लेखक उन पर तंज à¤à¥€ कसता है । पर कोई कà¥à¤› à¤à¥€ कहे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कोई फरà¥à¤• नहीं पड़ता है ।
ये कहानी है निधि के सचà¥à¤šà¥‡ पà¥à¤¯à¤¾à¤° की जो उसे कहानी के अंत में मिल पाता है ।
ये कहानी राघव की है । जो की अपने को खड़ा करता है । वो इस लिठकी निधि से बराबरी कर सके ।और वो सफल हो जाता है ।
उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में कोई लाग लपेट नही है कहानी धीरे धीरे अपनी जगह बनाती है । और अंत में दिल में उतर जाती है । अति à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• कहानी है और बड़ी ही तेजी से चलती है । शायद लेखक à¤à¥€ लिखते हà¥à¤ देखना चाहता हो की अंत कैसा है । कहानी में निधि राघव से बेवफाई कर देती है और उसी ताने बाने में कहानी घूमती रहती है । पर कहते है à¤à¤• बार की गलती तो à¤à¤—वान à¤à¥€ माफ कर देते है । तो हम नही कर सकते है कà¥à¤¯à¤¾ ? आखिर हम उनकी की ही तो संतान है । पर कहानी का नायक तो बस छोटी सी बात को पकड़ कर जलता रहता है । जब तक उसे अपनी गलती का पता चलता है बहà¥à¤¤ देर हो चà¥à¤•à¥€ होती है।
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