Description
इस शेरी मजà¥à¤®à¥‚आ ‘नवा-à¤-रफ़ी’ में शामिल तमाम अशआर ज़बानो-बयान और मआनी-ओ-मतालिब के à¤à¤¤à¤¬à¤¾à¤° से à¤à¤• ख़ास क़ूवते-फ़िकà¥à¤°-ओ-कà¥à¤¹à¤¨à¤¾ मशà¥à¤•à¥€ की दलील है। अपनी सीरत व शख़à¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¤ को सà¤à¤µà¤¾à¤°à¤¨à¥‡ और उसà¥à¤¤à¤µà¤¾à¤° करने में जनाब रफ़ी यूसà¥à¥žà¤ªà¥à¤°à¥€ साहब को कैसी सबà¥à¤°-आज़मा आज़माइशों से गà¥à¥›à¤°à¤¨à¤¾ पड़ा है उसकी à¤à¤²à¤• आपके कलाम में साफ़ तौर पर देखने को मिलती है। जनाब रफ़ी यूसà¥à¥žà¤ªà¥à¤°à¥€ साहब के कलाम में जिदà¥à¤¦à¤¤ के साथ-साथ क़दीम रंग à¤à¥€ à¤à¤²à¤•à¤¤à¤¾ दिखाई देता है आपकी ग़ज़लों में ज़ियादातर अशआर तसवà¥à¤µà¥à¥ž और इरफ़ाने-हक़ पर मबनी होते हैं। यह शेरी मजà¥à¤®à¥‚आ ‘नवा-à¤-रफ़ी’ मà¥à¤¹à¤¤à¤°à¤® ‘रफ़ी’ यूसà¥à¥žà¤ªà¥à¤°à¥€ साहब की ज़िंदगी à¤à¤° की अदबी काविशों का अदबी समरा और उनके सबसे अहम तरीन ख़à¥à¤µà¤¾à¤¬ की à¤à¤• हसीन ताबीर है जो आज हम सबके हाथों में à¤à¤• किताबी शकà¥à¤² में मौजूद है। यह किताब बदक़िसà¥à¤®à¤¤à¥€ से उनकी हयात में किनà¥à¤¹à¥€à¤‚ वजूहात से मंज़रे-आम पे न आ सकी थी जिसका उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आख़िरी वक़à¥à¤¤ में बेहद मलाल रहा।
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