Vijay Yatra Ki Ore

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Description

“स्वयंसिद्ध” पुस्तक मुखर व्यक्तित्व के धनी ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ की जीवन गाथा है जिसे हम शिवगाथा कह सकते हैं, इस शिवगाथा का संपूर्ण चित्रण ऐतिहासिक तथ्यों को श्रेणीबध्द तरीके के साथ प्रथम पुरषी विधा के साथ शिवाजी महाराज के माध्यम से ही प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। शिवाजी महाराज के समय बाहरी आक्रकन्ताओं के अत्याचार व्यभिचार एवं दुराभाव के कारण भारतीयों की मनोदशा गुलामी की जंजीरों में बंध चुकी होने के कारण सर्वत्र घोर निराशा का वातावरण था इस समय अपने ही लोग अपने लोगों पर जोर जुल्म ढा रहे थे और शुद्र स्वार्थ के लिए बाहरी आक्रान्ताओं का खुलकर साथ देकर अपनी मातृभूमि को निरादरित कर रहे थे ऐसे समय में शिवाजी महाराज ने आम नागरिकों के मन में गुलामी से मुक्त होने की भावनाओं को अंकुरित किया । उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया इसके लिए स्वयं शिवाजी महाराज ने अपना संपूर्ण जीवन मातृभूमि की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया संपूर्ण पुस्तक में शिवाजी महाराज की कार्य पद्धति व्यवहार पद्धति न्याय पद्धति युद्ध नीति रणनीति कूटनीति आदि का विस्तृत विवरण प्रसंग अनुसार विविध आयामों के साथ किया गया है शिवाजी महाराज अपने संपूर्ण जीवन में आज की परिस्थिति अनुसार 24× 365 के अनुसार मातृभूमि की सेवा में तल्लिन में रहते थे । शिवाजी महाराज द्वारा किए गए सभी कार्य मील के पत्थर होकर पाषाण की लकीर है जो की सृष्टी के अंत तक अपना वजूद रखने वाले हैं। ऐसी शिवगाथा का वर्णन करने के लिए प्रत्येक इतिहासकार को शब्द कम पडना सामान्य बात है। कम शब्दों का प्रयोग करने के बावजूद “स्वयं सिद्ध पुस्तक के 3 अंक प्रकाशित हुए हैं- प्रथम अंक ‘स्वराज्य की शपथ’, दूसरा अंक ‘विजय यात्रा की ओर’ और अंतिम भाग ‘स्वराज्य की स्थापना’ के रूप में आपके सामने प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

Book Details

Weight 335 g
Dimensions 0.9 × 5.5 × 8.5 in
Edition

First

Language

Hindi

Binding

Paperback

Pages

268

ISBN

9789391531461

Publication Date

2022

Author

Chandrakant Bhalerao

Publisher

Anjuman Prakashan

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