Sri Bappa Rawal Shrinkhla khand 2 Vijayyatra

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Description

सत्य का मूल स्वभाव क्या है ? वो मनुज की आत्मा को झकझोरकर उसके विवेक को जगा भी सकता है, और हर जिह्वा और दृष्टिकोण के द्वारा अपने प्रारूप को परिवर्तित कर समाज में भ्रम बनाकर रखते हुए सत्ता की रोटी सेंकने का माध्यम भी बन सकता है एक ओर हैं महारावल जो सत्य का प्रताप लिए सिंधियों की रक्षा और पुराने प्रतिघातियों के विवेक को जगाने सिंध की पवित्र भूमि में पग रख चुके हैं वहीं संभावित पराजय के भय से मुहम्मद बिन कासिम भी अत्याचार का मार्ग छोड़ सत्य के अनेक प्रारूप बनाकर सिंधियों को अपने पक्ष में करने की योजना में जुट गया है विडम्बना दोनों के जीवन में है महारावल को समस्त सिंधियों ने गुहिलदेव का मान दिया, ईश्वर तुल्य सम्मान दिया, किन्तु अपने भ्राता समान सखा को अपने हाथों से वीरगति देने की ग्लानि से उनका मन अब तक नहीं उबर पाया और ये ग्लानि बार बार उनके अभियान में रुकावट बन रही है वहीं कासिम के सिंधियों को अपने पक्ष में करने के प्रयास में भी उसके अपने ही बार बार रुकावट बनते जा रहे हैं अब प्रश्न ये है कि विजययात्रा के इस पथ पर किसका ध्वज लहराएगा शाश्वत सत्य के प्रतापी मार्ग का या फिर भ्रमित करने वाले सत्य के विभिन्न प्रारूपों का उत्तर लेकर आयेगा श्री बप्पा रावल श्रृंखला का ये अंतिमखंड

Book Details

Weight 284 g
Dimensions 8.5 × 5.5 × 8.5 in
Author

Utkarsh Srivastava

Binding

Edition

First

ISBN

9788119562275

Language

Hindi

Pages

284

Publication Date

9 Oct 2024

Author

Utkarsh Srivastava

Publisher

Anjuman Prakashan