Description
एक वक्त था जब सियासत और साहित्य का समागम हुआ करता था… इशारों में समझाने का इरादा और कम शब्दों में ज़्यादा कहने के लिए सदन में शेरो-शायरी कविता का इस्तेमाल किया जाता था… उसी दौर में इंदौर से भाजपा विधायक रहे गोपी कृष्ण नेमा भी विधानसभा में शेरो-शायरी और कविता के साथ अपनी बात रखने के लिए जाने जाते थे… फिर अचानक एक दिन उनकी इस किताब की पांडुलिपि मुझे भेजी गई जिसमें उनकी अपनी कविताएँ थीं… कविताएँ कहें या यूँ कहिए कि एक राजनेता ने अपने राजनैतिक प्रसंगों को, अपनी राजनैतिक विचारधारा को शब्दों में पिरो कर कविता में ढालने का प्रयास किया है… चुने गए शब्दों में राजनैतिक और विचारधारा का स्पष्ट प्रतिबिंब मिलता है… जो विपरीत राजनैतिक या विचारधारा वाले व्यक्ति को असहज कर सकता है… लेकिन असहमति के बावजूद शब्दों में गोपी कृष्ण नेमा जी की वैचारिक और राजनैतिक ईमानदारी की सराहना की जाना चाहिए… कई जगह उन्होंने अपनी राजनैतिक हताशा निराशा यहाँ तक कि चुनाव में हार पर भी शब्द उकेर कर खुद को दिलासा दिया है जो उनकी दृढ़ता का प्रतीक है… हालांकि इनकी कविताओं में सिर्फ राजनेता ही नहीं बल्कि शहर का ज़िम्मेदार नागरिक भी दिखता है जो अपने शहर की दुर्दशा से दुखी है… उसे पर्यावरण की भी फिक्र है… नारी के सम्मान का भी ख्याल है… समाज की बढ़ती नफ़रत पर भी वो चिंतित हैं… निःसंदेह यह किताब गोपी ने कवि बन कर लिखी होगी लेकिन वो अपने कवि में से राजनेता को अलग नहीं कर पाए… अगर उन्होंने विशुद्ध कवि बन कर यह किताब लिखी होती तो शायद वो और बेहतर कर सकते थे…इस सबके बावजूद में गोपी नेमा जी को मुबारकबाद देते हुए उनकी कोशिशों की सराहना करूंगा… क्योंकि मेरा मानना है कि इस दौर में अगर सियासी लोग शेरो-शायरी कविता साहित्य से जुड़े रहेंगे तो शायद वो समाज के मर्म को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे…. जिगर मुरादाबादी का यह शेर गोपी नेमा जी को नज़र करते हुए अपनी बात खत्म करता हूं कि “उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें, मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे “





