Description
सीता जा चà¥à¤•à¥€ थीं, किनà¥à¤¤à¥ सच तो यह था कि वे शरीर से à¤à¤²à¥‡ ही नहीं थीं, किनà¥à¤¤à¥ लोगों के हृदय में उनका सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ था। शाम हो चà¥à¤•à¥€ थी। मन कà¥à¤› उदास सा हो रहा था। वे नितà¥à¤¯ के विपरीत अपने ककà¥à¤· में जाने के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर, महल की सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की ओर बॠगये। छत पर पहà¥à¤à¤šà¥‡ तो हवा ठंà¥à¥€ और कà¥à¤› तेज थी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने खड़े हो कर आसमान की ओर à¤à¤¸à¥‡ देखा जैसे कà¥à¤› खोज रहे हों। फिर उस ओर देखा जिधर वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ था जिस तक पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤£ से पूरà¥à¤µ सीता के पदचिनà¥à¤¹ मिले थे। कà¥à¤› देर तक वे अपलक उधर देखते रहे, फिर सिर à¤à¥à¤•à¤¾à¤•à¤° धीमे कदमों से चलते हà¥à¤¯à¥‡ छत के उस किनारे पर आ गये जहाठमिटà¥à¤Ÿà¥€ के पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ में फूलों के बहà¥à¤¤ से पौधे लगे हà¥à¤¯à¥‡ थे। सीता जब थीं, तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इन पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ में फूलों के पौधे लगवाये थे। वे पौधों का बहà¥à¤¤ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखती थीं। उनके जाने के बाद राम अकà¥à¤¸à¤° इन पौधों के पास आकर खड़े हो जाते और इनमें खिले फूलों को निहारते और छूते थे। यह उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सीता की याद और à¤à¤• सà¥à¤–द सी अनà¥à¤à¥‚ति कराता था। आज वे जब इस ओर आये तो कà¥à¤› देर तक खड़े इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखते रहे, फिर à¤à¥à¤• कर इनमें से à¤à¤• से à¤à¤• फूल तोड़ा और बहà¥à¤¤ धीरे से उसे अपनी दोनों हथेलियों के बीच कर उसके सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ को महसूस करते हà¥à¤¯à¥‡, छत पर बने ककà¥à¤· में आ गये। यह शेष à¤à¤µà¤¨ से थोड़ा अलग था और सीता के जाने के बाद से अकà¥à¤¸à¤° जब सीता की सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ घेरने लगतीं, वे à¤à¤•à¤¾à¤¨à¥à¤¤ खोजते हà¥à¤¯à¥‡, इस ककà¥à¤· में आ जाते।
Reviews
There are no reviews yet.
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.