Rankshetram (5 books set)

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Description

Rankshetram Part 1

यह अनसुनी कथा है, द्वापर युग में महाभारत से पीढ़ियों पूर्व हुए दो महाविकराल संग्रामों की| चार खण्डों में बंटी, रणक्षेत्रम की यह गाथा किसी व्यक्ति विशेष की नहीं अपितु एक पूरे युग की है| एक ऐसा युग जिसने न्याय और धर्म की स्थापना की और एक ऐसा युग जिसने अखण्ड आर्यावर्त के सम्राट के समक्ष सभी राजाओं को झुका दिया| यह गाथा है महाऋषि ओमेश्वर के आशीर्वाद से जन्में दो महान योद्धाओं की | यह गाथा है मृत्यु के श्राप के उपरांत भी जीवित रह जाने वाले महाबली अखण्ड के अंतहीन संघर्ष की| यह कथा है भगवान महाबली के वंशज रक्षराज दुशल के प्रेम, पीड़ा और प्रतिशोध की | सदी के महान वीरों ने जिसके साथ छल किया, यह गाथा है उस महावीर योद्धा सुर्जन के प्रतिशोध की | और यह कथा है हस्तिनापुर के महान सम्राट महाराज भरत के संघर्ष की | मानवों, नागों और असुरों के मध्य हुए पहले महासंग्राम से शुरू होती कथा दूसरे महासंग्राम और भरतवंश की स्थापना के साथ समाप्त होती है|

Rankshetram Part 2

अपनों ने ही आसुरी अंश से श्रापित बताया। मुझे अपनी ही माता का हत्यारा बना दिया, मातृभूमि से निष्काषित कर दिया। ऐसे में जिन असुरों ने मेरा साथ दिया, मुझे अपनाया, मुझे सम्मान दिया तो एकचक्रनगरी के राजकुमार सुर्जन से असुरेश्वर दुर्भीक्ष बनकर पातालपुरी के सिंहासन को स्वीकार कर उनके उत्थान का प्रण लेकर क्या भूल की मैंने ? वैरागी के अंश से जन्मा तो तनिक वैराग्य भाव तो मुझमें भी था, राजसत्ता का लालच न था, किन्तु अपमान को तो बड़े से बड़ा महाऋषि भी नहीं भूल सकता। तो छेड़ दिया मैंने अपना प्रतिशोध युद्ध ! किन्तु क्या विजय के उपरान्त भी किसी निर्दोष के प्राण लिए? नहीं ! फिर भी सारे विनाश का दोष मुझ पर लगाकर वर्षों की श्रापित सुप्तावस्था में भेज दिया। जब आँखें खुली तो मैं अपना सबकुछ खो चुका था। पातालपुरी का शासन वापस मिला, मेरे नाम का भय समग्र संसार में फैलने लगा, किन्तु जीवन वर्षों तक रिक्त सा रहा । फिर एक दिन अकस्मात ही युद्ध में चंद्रवंशी युवराज सर्वदमन के सामने आते ही मेरे सारे घाव हरे हो गये | किन्तु वहाँ भी अपना रौद्र रूप धारण करने से पूर्व ही एक स्त्री मेरे सामने आ गयी और हृदय में धधकती प्रतिशोध की अग्नि लिए मुझे शस्त्रों का त्याग कर पीछे हटना पड़ा। क्योंकि वो स्त्री जो सर्वदमन के रक्षण को आयी उसके समक्ष मैं शस्त्र तो क्या दृष्टि उठाने योग्य भी नहीं था। क्या इस अवरोध को पार कर कभी मैं अपने हृदय में धधक रही प्रतिशोध की अग्नि को शांत कर सकूँगा ? बस इसी प्रश्न के इर्द गिर्द घूमती है मेरे जीवन की ये गाथा।

Rankshetram Part 3

रणक्षेत्रम के पहले भाग में पाँच दिनों के महासमर और दूसरे भाग में इस महागाथा के सबसे मुख्य पात्र ‘दुर्भीक्ष’ की वापसी होने के बाद अब प्रस्तुत है रणक्षेत्रम श्रृंखला का तीसरा भाग जो दुर्भीक्ष के जीवन के सभी भेद खोलकर रख देगा| दुर्भीक्ष और दुर्धरा की प्रेम कथा, रीछराज जामवंत के साथ द्वंद्व, गरूड़ों का श्राप, त्रिगर्ता की यात्रा, और दुर्भीक्ष का एक बार फिर दुर्दांत हत्यारा बन पाँच सहस्त्र गंधर्वों की बर्बर हत्या जैसी अनेक घटनाओं को समेटे यह भाग श्रृंखला का सबसे महत्वपूर्व खण्ड होने जा रहा है| वहीं दूसरी ओर सदियों के उपरांत द्रविड़ प्रजाति अपनी मातृभूमि को वापस प्राप्त करने के लिए लौट आई है| ऐसा कौन सा असत्य था जिसने सुर्जन को फिर से दुर्दांत हत्यारा दुर्भीक्ष बना दिया? क्या रहस्य है गरूड़ों के श्राप का? हिस्सा बनें रक्तसागर से सनी एक श्रापित प्रेमगाथा का|

Rankshetram Part 4

पौरवों का कीर्तिवर्णन- चंद्रवंशी राजा ययाति के महान पितृभक्त पुत्र पुरू के वंशज पौरवों का कीर्तिवर्णन करती ये कथा मुख्यतः पुरू के बीसवें उत्तराधिकारी सर्वदमन के पुरूराष्ट्र के सिंहासन पर महाराज भरत के रूप में विराजमान होने की यात्रा का वर्णन करती है। डकैत दल का मेघवर्ण के प्रति विश्वास भंग करने की मंशा से उपनंद छल से मेघवर्ण को द्वंद में पराजित करता है। द्वंद की तय शर्त अनुसार उपनंद को मुक्त करके वापस त्रिगर्ता भेज दिया जाता है। इधर सर्वदमन मतस्यराज को पराजित कर जयवर्धन के विरुद्ध अपने अभियान की घोषणा करता है। उसके उपरांत ब्रह्मऋषि विश्वामित्र उसे महाबली अखण्ड के विदर्भ अभियान की योजना के विषय में अवगत कराते हैं। तत्पश्चात अपने परममित्रों और गणान्ग दल के प्रमुख भगदत्त और नंदका को लेकर सर्वदमन विदर्भ की प्रजा में विद्रोह का बीज बोने निकलता है। अपने साथियों का विश्वास वापस जीतने और महाबली वक्रबाहु को मुक्त कराने की मंशा से मेघवर्ण चंद्रकेतु को लेकर त्रिगर्ता पहुँचता है, जहाँ विजयदशमी की बलिप्रथा को देख वो दोनों चकित रह जाते हैं। इधर एक बहरूपिया दुर्भीक्ष के विश्वासपात्र सेनापति भद्राक्ष को मारकर उसका स्थान ले लेता है, और दुर्भीक्ष को भैरवनाथ का सम्पूर्ण सत्य बताता है। क्रोध में दुर्भीक्ष समस्त असुरप्रजा के समक्ष भैरवनाथ का सर काट देता है। कौन है ये बहरूपिया? विदर्भ की प्रजा में विद्रोह का बीज बोने के पीछे महाबली अखण्ड का क्या उद्देश्य है? मेघवर्ण और चंद्रकेतु कैसे त्रिगर्ता की बलि प्रथा का ध्वंस करते हैं? क्या भैरवनाथ वास्तव में मर चुका है? या असुरों का कोई और ही खेल चल रहा है?.

Rankshetram Part 5

आर्यावर्त के विभिन्न राज्यों के एक एक प्रांत में सात सात मायावी असुरों को भेजा गया। तीन प्रमुख नीतियों द्वारा मानव को मानव का शत्रु बनाकर उनकी संस्कृति को तुच्छ सिद्ध करके असुर संस्कृति के व्यापक फैलाव का षड्यंत्र रचा गया। कितने ही राजा या तो मारे गये, या अपना सिंहासन छोड़कर भाग गये। पाँच असुर महारथियों की रची प्रपंच कथाओं ने असुरेश्वर दुर्भीक्ष को भी ये विश्वास दिला दिया कि भटके हुये मानवों को असुर संस्कृति के आधीन करना आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु दुर्भीक्ष ने अपने एकमात्र बचे वंशज विदर्भराज शत्रुंजय को सम्राट बनाने का संकल्प लिया। उसके इस संकल्प का प्रतिरोध करने और मानव संस्कृति के रक्षण के लिए पौरवराज भरत अपने सारे मित्र राजाओं को लेकर विदर्भ से युद्ध की घोषणा कर देते हैं। वहीं असुरेश्वर दुर्भीक्ष भी अपनी समस्त सेना जुटाकर युद्ध की चुनौती स्वीकार करता है। युद्ध से पूर्व दुर्भीक्ष ब्रह्मऋषि विश्वामित्र के पास आकर उनके दिये हुये वचन का स्मरण कराता है। विश्वामित्र उसे विश्वास दिलाते हैं कि युद्ध के अंत में उसके समक्ष दो विकल्प आयेंगे। उस समय अपने माने हुये धर्म का अनुसरण करते हुये यदि दुर्भीक्ष ने उचित विकल्प का चुनाव किया तो वो स्वयं उसके एकमात्र वंशज शत्रुंजय का रक्षण करेंगे। तत्पश्चात दण्डकारण्य की भूमि पर आरंभ होता है ऐसा भीषण महासमर, जिसमें रणचंडी के युगों की प्यास बुझाने का सामर्थ्य है। क्या होंगे वो दो विकल्प जिसका चुनाव केवल दुर्भीक्ष का ही नहीं अपितु समग्र मनुजजाति का प्रारब्ध तय करेगा?

Book Details

Weight 1200 g
Pages

1503

ISBN

B08W3HZSWK

Author

Utkarsh Srivastava

Binding

Author

Utkarsh Srivastava

Publisher

Anjuman Prakashan,

Redgrab Books

Series

Rankshetram

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