5 Hindi Books Set (Prime Combo-1)

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Description

Blockbasters se Ballot Box Tak Anubhav Mohanty / Author: Jagrati Shukla & Astitva / MRP: 599 / Pages: 174

Description: “अनुभव मोहंती” ब्लॉकबस्टर्स से बैलट बॉक्स तक – एक ऐसे व्यक्ति के बहुआयामी जीवन को उजागर करती है, जिसने न केवल फ़िल्मी पर्दे पर अपनी छाप छोड़ी है, बल्कि राजनीति में भी राज्‍यसभा में अब तक के सबसे कनिष्ठ पुरुष सांसद और लोकसभा सांसद के रूप में अपनी पहचान बनाई है। ओड़िया फिल्म के सुपरस्टार और प्रसिद्ध राजनेता अनुभव मोहंती की यात्रा दृढ़ता, पारिवारिक मूल्यों और अपने प्रशंसकों के प्रति अड़िग समर्पण के बारे में है। यह किताब उनके स्टारडम, संघर्ष, रिश्तों और जीवन के उतार -चढ़ाव एवं दुनिया भर में उड़िया फ़िल्म प्रेमियों के साथ बनाए गए गहरे संबंधों को बताती है। बतौर लेखक जागृति शुक्ला ने ‘अनुभव’ के जीवन के अनुभव से भरी इस किताब में अब तक के उनके हर पड़ाव को रखने की पूरी कोशिश की है और वो लिखती हैं कि हालांकि अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे उनके चाहने और न चाहने वालों के बीच लाया जाना बाकी है. ऐसे में, मैं यही कहूँगी – ये किताब तो आग़ाज़ है, कहानी अभी बाक़ी है…

 

Rahat Sahab / Author: Dr. Deepak Ruhani / MRP: 299 / Pages: 256

Description: इस किताब के मुसन्निफ़ और मेरे लिये ये मुश्किल नहीं था कि आधी सदी की लगभग हर शब गुज़रे किसी वाक़िए या सानिहे की मुकम्मल या अधूरी तस्वीर दिखा कर इस किताब को अलिफ़-लैला की हज़ार दास्तान बना देते। लेकिन दीपक जो इस किताब के मुसन्निफ़ हैं उनका इरादा कुछ एबस्ट्रैक्ट बनाने का था जिसमें वो रावी की शक्ल में उन लोगों से मिलवाना चाहते थे जिनका मेरी रातों से ज़रा कम-कम ही तअल्लुक़ रहा। कुछ ख़ानदान के अफ़राद, कुछ अहबाब, कुछ दोस्त, कुछ मुख़ालिफ़ीन, लेकिन सच मानें जो मेरी रातों के गवाह रहे उनमें से ज़ियादातर लोग रुख़सत हो चुके हैं। ये किताब, बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल नहीं हिकायाते-हालात और हिकायाते-तज्रबात है, मेरे हाफ़िज़े की दहलीज़ पर जो क़िस्से और वाक़िआत दस्तक देते हैं वो एक-दूसरे से मिलकर गड्डमड्ड हो चुके हैं , यह किसी puzzle की सी है। एक ऐसे गत्ते से काटे हुए बे-तरतीब टुकड़े, जो आधी सदी से गर्मी, सर्दी, बारिश, धूप-छाँव जैसे अनाम और अनजान मौसमों से आँखें मिलाते-मिलाते बूढ़ा हो गया, या यूँ कहिये कि इस किताब के ज़ियादातर काग़ज़ इतने भीग चुके हैं कि इस पर मौजूद तहरीर पर लगाने को तैयार है, लेकिन इस किताब के लेखक की ज़िद ने इसे तरतीबवार बनाने की मुकम्मल कोशिश की है। दिलचस्पी का हल्का सा दरीचा खोलने पर राहत इंदौरी की तस्वीर को पहचानना आसान हो जाता है। मुझे इस बात का एतराफ़ है कि मैं उस तमाशे को भी दिखाने में कहीं-कहीं तक़ल्लुफ़ बरत गया हूँ जो तमाशा मेरे आगे होता रहा है। ये किताब पचास-साठ के दशक की black and white फ़िल्म की तरह है जिसमें कोई पहचानी हुई सी तस्वीर कभी आवाज़ खो बैठती है और कभी चीख़ पड़ती है, मेरी ख़्वाहिश है कि लोग इस तस्वीर को पहचानें जिसे बनाने में उसकी कोई कोशिश नहीं जिसकी तस्वीर है… मैं चाहता हूँ कि लोग इसे कोई नाम दें ताकि पता चल सके कि मैं कहाँ दफ़्न हूँ… – राहत इंदौरी

 

Aawaz Me Lipti Khamoshi / Author: Gulsher batt / MRP: 299 / Pages: 192

Description: आवाज़ में लिपटी ख़ामोशी’ अपनी नौईयत की मुनफ़रिद किताब है जो पूरी – की – पूरी पेश लफ़्ज़ भी है, बायोग्राफ़ी भी है, तहसीने-फ़िक्रो-फ़न भी है और एक मुहब्बतकार का गुलज़ार जी के लिए अदबी अक़ीदत-नामा भी है। मैं इसे गुलज़ार की ज़िंदगी का तवील-तरीन दीबाचा कहूँगा, जिसे ‘गुलशेर बट’ ने एक ऐसी किताब का रूप दे दिया है जिसमें लिखा हुआ तो पढ़ा ही जा सकता है, लेकिन लिखे से ज़्यादा अनलिखा यानी बैनुस्सुतूर और पसे-अल्फ़ाज़ भी इतना कुछ है जिसे हर ज़ीहिस क़ारी बा-आसानी गुलज़ार जी से अपनी-अपनी मुहब्बत को अल्फ़ाज़ में ढलते हुए देख सकता है। ये किताब एक ऐसा कैप्सूल है जिसे निगलते ही आपके अंदर गुलज़ार की शख़्सियत और शायरी का नशा भर जाता है। बिला शुबहा गुलज़ार एक ऐसे फ़नकार हैं जिनके फ़न की ख़ुशबू सरहद के दोनों अतराफ़ में यकसाँ फैली हुई है। एक तरफ़ गुलज़ार का वतन है और दूसरी तरफ़ उनका मुल्क। गुलशेर ने इस हक़ीक़त को फ़िक्शन बना दिया है और कमाल बेसाख़्तगी से, दिल को छू लेनेवाले जज़्बात भरे, मगर तख़्लीक़ी पैराये में एक फ़नकार की ज़िंदगी के छोटे-बड़े तल्ख़-ओ-शीरीं वाक़िआत और उसकी फ़न्नी तहसीलो-तक्मील के अमल को बयान कर दिया है। मुझे तो ये किताब हक़ीक़त, फ़िक्शन, सरगुज़िश्त, फ्लैश-बैक, रिपोर्ताज, तअस्सुराती तन्क़ीद और हल्के-फुल्के ज़ाती फ़ल्सफ़े का ख़ूबसूरत इम्तिज़ाज लगती है, जिसकी आख़िरी सत्र तक पहुँचकर पढ़नेवाला सोच में पड़ जाता है कि गुलज़ार जी को ख़िराजे-तहसीन पेश किया जाये या गुलशेर को। मेरी दानिस्त में गुलशेर ने उर्दू अदब में एक नयी सिन्फ़ ही बना डाली है। – -नसीर अहमद नासिर

 

Ab Pallavi Azad Thi / Author: SURYA KUMAR UPADHYAY / MRP: 200 / Pages: 168

Description: इस किताब के ज़रिये लेखक ने ज़िन्दगी को क़रीब से देखने-समझने की कोशिश की है। शीर्षक कहानी ‘अब पल्लवी आज़ाद थी’ समाज में महिलाओं की अभिव्यक्ति की आज़ादी की अवधारणा को पुख्ता करती है। बात करें अगर व्यवहारिक या पारिवारिक संबंधों की तो इसे अपने नज़रिये से देखना नीरस काम हो सकता है लेकिन जब इन्हीं संबंधों को दुनिया के चश्मे से देखना हो तो सोच का दायरा और गूढ़ और रोमांचक हो जाता है। कहानी ‘नागिन चाय’ की बात करें तो भावनात्मक और भौतिकवादी दोनों ही तरह का नज़रिया रखने वालों के लिए इस कहानी को पढ़ना अनिवार्य सा लगेगा। कहानी ‘ पारो और चंन्द्रमुखी’ अपने अंदर कहीं हास्य रस, रौद्र रस, श्रृंगार रस तो कहीं करूण रस और अद्भुत रस को बारीकी से समेटे हुए है। लाचार पति की बेबसी की अनुभूति लेनी हो या पति-पत्नी के बीच तीखी नोंक-झोक के तड़के का एहसास करना हो या फिर अल्हड़ प्यार के साथ-साथ शुद्ध देसी रोमांस के मिज़ाज का मज़ा लेना हो तो ‘दिल उल्लू का पट्ठा’ जैसी कहानी आपके अंदर सोई हुई रूमानियत को जगाने का काम करेगी और आपके दिल को रोमांचित भी करेगी। युवा पीढ़ी की प्यार के करिश्माई अनुभवों को भी इस कहानी संग्रह में ख़ास तवज्जो दी गई है। इश्क़ के लिए प्रेरित करती कहानियों के साथ ‘लव ३६’ जैसी कहानी महानगरों में पनपने वाले अतरंग विवाहेत्तर संबंधों के विलक्षण तरीक़ों से पाठकों को रूबरू कराएगी। इस कहानी संग्रह में शामिल कहानियों में महज़ अल्हड़ता ही नहीं छिपी है बल्कि ‘एवरबेस्ट गिफ्ट’ जैसी कहानी भावना प्रधान लोगों की आँखों को बार-बार भिगोने का काम करेगी।

 

Drama Queen / Author: Urmi Rumi / MRP: 225 / Pages: 116

Description: एक लड़की थी। अकेली और तन्हा। उसे लगता उसे कोई नहीं समझता। बहुत बार बताने के बाद लोग उसे समझ पाते। वो थक जाती, समझाते। किसी से बात करने का ही दिल नहीं करता। फिर एक दिन जिस कोने में वो बैठी थी, उसी कोने से उसे दूसरे कोने में बैठी और एक लड़की दिखी। उसे हैरानी हुई! क्या मेरे जैसा और भी कोई है? वहां बैठी लड़की ने उसे देखा। हौले से मुस्कुरायी, डरते डरते। लड़की भी मुस्कुरायी। बस फिर क्या था? मुस्कुराहटें बढ़ती चली गयीं! जैसे मुरझाती कलियाँ खिल उठीं। अब न समझना पड़ता, और न समझाना। न थकान न अकेलापन। ये जादू नहीं है, ये दोस्ती है – दो सहेलियों कि दोस्ती।

Book Details

Weight 1054 g
Pages

1054

Binding

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Language

Hindi