Description
पाà¤à¤š पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को वरण करने वाली दी, अपने पतियों के कारण कà¥à¤°à¥-सà¤à¤¾ में अपमानित हà¥à¤ˆ, उसके उपरांत à¤à¥€ उसने ‘वरदान’ शबà¥à¤¦ में लिपटी दया के माधà¥à¤¯à¤® से उनको दासता से मà¥à¤•à¥à¤¤ करवाया और उनके असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ, सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ और शकà¥à¤¤à¤¿ की रकà¥à¤·à¤¾ के लिठऊरà¥à¤œà¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती वन-वन à¤à¤Ÿà¤•à¤¤à¥€ रही। पंच-पतियों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ सेवा, à¤à¤¾à¤µ, निषà¥à¤ ा और करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯-निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ के कारण जहाठà¤à¤• ओर सती के आसन पर विराजमान हà¥à¤ˆ| वहीं पंच-पति वरण के कारण à¤à¤• यà¥à¤— के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯, विदà¥à¤°à¥‚प का पातà¥à¤° बनी रही। विचितà¥à¤° है उसका जीवन; किनà¥à¤¤à¥ विचितà¥à¤°à¤¤à¤¾ और अंतरà¥à¤µà¤¿à¤°à¥‹à¤§ के बीच वह सदैव विशिषà¥à¤Ÿ रही। दी, नारी की सशकà¥à¤¤ गाथा है। हज़ारों वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€, टà¥à¤•à¥œà¥‹à¤‚-टà¥à¤•à¥œà¥‹à¤‚ में दी को जी रही है| कहीं वह अपमान और लांछना सहती है, तो कहीं पà¥à¤°à¥à¤· के à¤à¥€à¤¤à¤° की ऊरà¥à¤œà¤¾ बनती है। कहीं तà¥à¤¯à¤¾à¤— से उसके उतà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की सीà¥à¥€ बनती है, तो कहीं पà¥à¤°à¥à¤· के अहं के आगे विवश हो जाती है।
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