Kuchh Meetha Kuchh Khara


Description

कुछ मीठा कुछ खारापन है,क्या-क्या स्वाद लिए जीवन है ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक के ग़ज़ल संग्रह का यह टाइटल शेर बताता है कि जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों का निचोड़ है उनका नया ग़ज़ल-संग्रह ‘कुछ मीठा कुछ खारा’। गहन संवेदनाओं के धनी ओंकार सिंह विवेक का इस संकलन का यह शेर देखिए ज़ह्न में इक अजीब हलचल है,शे’र ऐसे सुना गया कोई। इस शेर की गहराई यह समझने के लिए काफ़ी है कि ग़ज़ल के शे’र सड़क से संसद तक क्यों उद्धृत जाते हैं।अपने जागृत विवेक, अनुभव और भाव सम्पन्नता के साथ सहज,सरल और आमफ़हम भाषा में कहे गए ओंकार सिंह विवेक के शे’र सीधे दिल में उतरते चले जाते हैं। चुप्पियाँ अगर महत्वपूर्ण संदेश हैं तो समय की माँग पर मुखर हो जाना भी अत्यंत आवश्यक है। ओंकार सिंह विवेक के ये अशआर इस बात की तस्दीक़ करते हैं ध्यान सभी का देखा ख़ुद पर तो जाना,चुप रह कर भी कितना बोला जाता है। हरदम ख़ामोशी ओढ़ नहीं सकते, यार कभी तो मुँह भी खोला जाता है।यूं लगता है कि ग़ज़ल को जीने वाले ओंकार सिंह विवेक के समस्त जीवनानुभव उनकी ग़ज़लों में उभर आए हैं। उनके चिंतन की गहराई और भाव संपन्नता से रूबरू होने के लिए उनका नया ग़ज़ल-संग्रह ‘कुछ मीठा कुछ खारा’ अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।

Book Details

Weight 108 g
Dimensions 8.5 × 5.5 × 8.5 in
Author

Onkar Singh 'Vivek'

Binding

Edition

First

ISBN

9788119562893

Language

Hindi

Pages

108

Publication Date

11-Nov-2024