Description
हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ की कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति विदेशियों के खिलाफ 1857 के करीब शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆ, जिसे हम कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति कहते है और अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ जिसे ग़दर कहते है।
अà¤à¥€ तक जितना साहितà¥à¤¯ उपलबà¥à¤§ है, उनमें शहीद ठआज़म सरदार à¤à¤—त सिंह, अशफाक उलà¥à¤²à¤¾, राजगà¥à¤°à¥, सà¥à¤–देव, बटà¥à¤•à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° दतà¥à¤¤, चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद, रामपà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ बिसà¥à¤®à¤¿à¤² इनके समà¥à¤¬à¤‚ध में ही जानकारी मिलती है और वो à¤à¥€ थोड़ी थोड़ी लेकिन कोई ये नही जानता कि पंजाब में राधेशà¥à¤¯à¤¾à¤® कथावाचक, मदनलाल ढींगरा, à¤à¤—वती चरण वोहरा, अरविंद घोष, रासबिहारी बोस, पृथà¥à¤µà¥€ सिंह ये सà¤à¥€ कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ की आजादी के लिठफाà¤à¤¸à¥€ चॠगà¤, मरमिटे। à¤à¤—त सिंह और अशफाक उलà¥à¤²à¤¾ आमने सामने के बैरक में बंद थे, सबसे उजà¥à¤œà¥à¤µà¤² चरितà¥à¤° à¤à¤—वती चरण वोहरा का था। à¤à¤—वती चरण वोहरा की पतà¥à¤¨à¥€ दà¥à¤°à¥à¤—ा à¤à¤¾à¤à¥€ उन शहीद महिलाओं में थी, जिसने अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹ से बदला लिया। à¤à¤—वती चरण वोहरा और उनके साथी बम बनाने के लिठसमान इकटà¥à¤ ा करते थे और फिर बम तैयार होता था। à¤à¤• बार की बात है कि वोहरा सारा सामान इकटà¥à¤ ा कर लाठऔर वो उनकी छत पर सà¥à¤– रहा था लेकिन अंतिम पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ वोहरा को नही मालूम थी लेकिन उनके साथी और अनà¥à¤¯ दो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जंगल मे गठजहां बम उड़ाने की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ की नतीजा यह हà¥à¤† कि à¤à¤—वती चरण वोहरा के छोटे छोटे टà¥à¤•à¥œà¥‡ हो गà¤, पास ही नाला था पर उसमे शव दफन नही हो सकते थे। अतà¤à¤µ उन शवो को दफनाने का निरà¥à¤£à¤¯ लिया गया, जब घर लौट कर आठतो दà¥à¤°à¥à¤—ा à¤à¤¾à¤à¥€ अपने आंसू रोककर अपने साथी की पतà¥à¤¨à¥€ को ढांढस बंधवा रही थी, इसके बाद वो किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° बमà¥à¤¬à¤ˆ पहà¥à¤à¤š गई और वहाठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹ के कà¥à¤²à¤¬ के कई अधिकारियों को गोली से उड़ा दिया। à¤à¤¾à¤ˆ मà¥à¤‚शी सिंह लाहौर में रहते थे और अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹ के खिलाफ बगावत करने के लिठईरान जाते और वहाठसे वापस आ जाते, कई साल वो नही पकड़े गठलेकिन फिर आखरी बार वो पकड़े गठऔर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤¬à¤¹ 7 बजे सिर के बीचों बीच गोली मारने का आदेश दिया गया, उनकी यातà¥à¤°à¤¾ धूमधाम से निकली और तेरन में उनकी मजार आज à¤à¥€ बनी है और हजारों ईरानी अपनी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि देने जाता है। चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद कई कांडों में उलà¤à¥‡ हà¥à¤ थे औऱ वो बचते बचाते à¤à¤²à¥à¤«à¥à¤°à¥‡à¤¡ पारà¥à¤• अलाहाबाद में अपने आपको छà¥à¤ªà¤¾à¤¨à¥‡ का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ कर रहे थे लेकिन मà¥à¤–बिरों की वजह से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गोली मार दी गई। चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद को फांसी के पहले मिलने के लिठउनकी मां गई तो उनकी आंख से दो आंसू टपक पड़े, आजाद ने कहा कि आजाद की माठइतनी कमजोर हो सकती है मालूम नही थी, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि जिस रासà¥à¤¤à¥‡ पर मà¥à¤à¤° चलाया है उसमे अफसोस कि बात कà¥à¤¯à¤¾ है ये तो सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ा रोहन है।
ये जो मैंने नाम दिठहै ये लिसà¥à¤Ÿ छोटी है सैकड़ो à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ शहीद हो गठलेकिन उनकी कथनी औऱ करनी के बारे में ये देश नही जानता है।
आज इनको किस सरकार ने याद किया और इनको किस सरकार ने जीवन बिताने की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ दी, इनका समà¥à¤®à¤¾à¤¨ किया।
अगर à¤à¤—त सिंह, अशफाक उलà¥à¤²à¤¾, चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद, इनको देश याद करता है तो ये नाम है कि जिनको देश को आज à¤à¥€ याद करना चाहिà¤, इनके परिवार को सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ à¤à¤µà¤‚ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ देना चाहिà¤, इस किताब को लिखने का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ यही था।
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