Description
हिम्मत ने तो कभी टूटते तारों से अपने लिए किसी परी की ख़्वाहिश न की थी, बल्कि उसका अरमान तो फ़ौज में जाने का था। और लाली ने भी कहाँ कोई सोलह सोमवार के व्रत रखकर कोई बांका नौजवान भोलेनाथ से माँगा था। फिर ये प्यार का काँटा दोनों को कैसे चुभा इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं है। दोनों ने एक-दूजे को ख़ूब प्यार किया और टूटकर किया पर ऐसा क्या हुआ जिसने दोनों को तोड़कर रख दिया। क्या हिम्मत और लाली जुदा हो गये? क्या उनका प्यार अपने अंजाम तक पहुँचा? क्या लाली हिम्मत के घर की दहलीज़ में दाख़िल हो पाएगी? क्या होगा जब प्यार की इस कहानी पर नज़र पड़ेगी महेंद्र सिंह और कालू की! क्या नीरजा का दिल अपने बेटे हिम्मत की चाहत को स्वीकार लेगा? क्या लक्ष्मणगढ़ के रेतीले धोरे हिम्मत और लाली का मिलन देखेंगे? कुछ कहा नहीं जा सकता! मोहब्बत की बिसात पर सबने अपने-अपने दाँव लगा रखे हैं। कौन जीतेगा और कौन हारेगा ये तो वही तय करेगा जिसमें ये बाज़ी खेलने की हिम्मत होगी।
Reviews
There are no reviews yet.
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.