Description
अखिलेश तिवारी ग़ज़ल की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का à¤à¤• सà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤šà¤¿à¤¤Â नाम है। "और कितने आसमां" के नाम से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ इनकी ग़ज़लों की यह बहà¥à¤ªà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ किताब है। किताब में यथारà¥à¤¥ की खà¥à¤°à¤¦à¥à¤°à¥€ ज़मीन पर ज़िनà¥à¤¦à¤—ी के विविध रंगों से अकà¥à¤•à¤¾à¤¸à¥€ की गई है। ग़ज़लों के साथ नज़à¥à¤®à¥‹à¤‚, क़तों और दोहों को à¤à¥€ इसमें जगह दी गई है। पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• की संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ किंतॠपà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ à¤à¥‚मिका में à¤à¤• जगह अखिलेश तिवारी लिखते हैं: "असà¥à¤² में ग़ज़ल की अपनी à¤à¤• शबà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤²à¥€ है जिसमें कà¥à¤› शबà¥à¤¦ बड़ा कूट अरà¥à¤¥ लिठहोते हैं। मज़ा तो जब है कि ये अरà¥à¤¥ पà¥à¤¨à¥‡, सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ वाले की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾, अनà¥à¤à¤µ और मनोदशा के अनà¥à¤°à¥‚प उस पर सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ à¤à¤° खà¥à¤²à¥‡à¤‚ पर खà¥à¤²à¥‡à¤‚ अवशà¥à¤¯à¥¤ बंद लिफ़ाफ़े से बेरंग न लौट आà¤à¤‚।फिर ग़ज़ल का जहां तक सवाल है, शेरों का à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ कà¥à¤¯à¤¾ होगा कà¥à¤› पता नहीं।सामानà¥à¤¯ से लगने वाले मिसरे कई बार इतना अंडर करंट लिठहोते हैं कि उनकी चमक और रोशनी या कहें ऊषà¥à¤®à¤¾ सहज ही अपनी गिरफ़à¥à¤¤ में ले लेती है। अचà¥à¤›à¤¾ शेर कई बार काविशों के बोठसे दबकर हांफने लगता है।"
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