लेखक राजनीति विज्ञान और कानून के प्रथम श्रेणी के विद्यार्थी रहे हैं। विद्यार्थी जीवन से ही इन्हें कविताएँ और कहानियाँ लिखने का शौक रहा है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ-कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। लेखक मध्यमवर्गीय विडम्बनाओं में उलझे, तो फिर एक लम्बे समय तक लेखन बाधित रहा। वर्तमान में बसिलसिले-रोजगार वकालत के पेशे से जुड़े हैं। लेकिन अपने अस्तित्व की खोज में सीधा सामाजिक सरोकार रखते हुए कुछ युवाओं के साथ ‘पंख’ (उड़ान एक उम्मीद की) संस्था के माध्यम से सामाजिक सेवा और जन-जागरूकता का कार्य करते हैं। अजय प्रताप श्रीवास्तव की कहानियाँ सीधे तौर पर सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई एवं यथार्थपरक हैं। चुटीले अंदाज में लिखी ये कहानियाँ सहज पठनीयता के साथ प्रश्न खड़े करती हैं। मताकू (कहानी-संग्रह) में लेखक के कार्यों और अनुभवों की झलक स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ती है।
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