Description
चार खणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ में फ़ैली महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ गौरवगाथा के पहला à¤à¤¾à¤— है। यह कहानी है à¤à¤¾à¤°à¤¤ वरà¥à¤· में पाà¤à¤š हजार वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ और अधिक से पूरà¥à¤µ की, à¤à¤• महायà¥à¤¦à¥à¤§ के पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ की, दो वंशों के बीच बनते-बिगड़ते संबंधों की, अधिकार और राजà¥à¤¯ सतà¥à¤¤à¤¾ के लिये हà¥à¤ संघरà¥à¤·à¥‹à¤‚ की, संघरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के बीच पनपते पà¥à¤°à¥‡à¤®, समà¥à¤®à¤¾à¤¨ तथा दया और ममता की, तà¥à¤¯à¤¾à¤— और बलिदानों के साथ उपजती लालसाओं और असनà¥à¤¤à¥‹à¤· की, और अंत में à¤à¤• नारी के अपमान पर उबलते हà¥à¤ ख़ून और पीड़ा की, समसà¥à¤¤ संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं के साथ धरà¥à¤® और विशà¥à¤µà¤¾à¤¶ की रकà¥à¤·à¤¾ की, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के साथ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ और विनाश की à¤à¥€, अनादि काल से मानवीय संबंधों के बीच संघरà¥à¤· होते रहे हैं, आज à¤à¥€ हैं और शायद आगे à¤à¥€ रहेंगे ही। किनà¥à¤¤à¥ विगत संघरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के होने के कारणों से आज का मनà¥à¤·à¥à¤¯ कà¥à¤› न कà¥à¤› सीखता आया है।
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