Description
सीता जा चà¥à¤•à¥€ थीं; किनà¥à¤¤à¥ सच तो ये था कि वे शरीर से à¤à¤²à¥‡ ही नहीं थीं, किनà¥à¤¤à¥ लोगों के हृदय में उनका सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ था। दरबार लगा हà¥à¤† था। कैकेयी के मायके, केकय देश से आने वाले समाचार चिनà¥à¤¤à¤¿à¤¤ करने वाले थे। गनà¥à¤§à¤°à¥à¤µà¥‹à¤‚ ने वहाठबहà¥à¤¤ उतà¥à¤ªà¤¾à¤¤ मचा रखा था, और वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ नरेश; कैकेयी का à¤à¤¾à¤ˆ यà¥à¤§à¤¾à¤œà¤¿à¤¤, उनका उचित पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤° नहीं कर पा रहा था। अयोधà¥à¤¯à¤¾ का राजà¥à¤¯ केकय की सहायता करना चाहता था, किनà¥à¤¤à¥ अà¤à¥€ तक वहाठसे कोई सहायता माà¤à¤—ी नहीं गयी थी, अत: दरबार ने इस समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ में पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ की बात की। कà¥à¤› अनà¥à¤¯ समाचार à¤à¥€ थे, उनकी समीकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ हà¥à¤ˆà¥¤ सीता के पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤£ के बाद से जनकपà¥à¤°à¥€ और मिथिला के समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥‹à¤‚ में वह ऊषà¥à¤®à¤¾ नहीं रह गयी थी। उन समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ इस सà¤à¤¾ में चरà¥à¤šà¤¾ हà¥à¤ˆ और सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• ही अशà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§ यजà¥à¤ž और सीता की बातें à¤à¥€ आयीं। सीता की बातें राम के हृदय में पीड़ा à¤à¤° देती थीं। चरà¥à¤šà¤¾à¤à¤ समापà¥à¤¤ हà¥à¤°à¥à¤‡à¤‚ तो राम उठपड़े। बाहर आये तो शाम हो चà¥à¤•à¥€ थी। मन कà¥à¤› उदास सा हो रहा था। वे नितà¥à¤¯ के विपरीत, अपने ककà¥à¤· में जाने के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर, महल की सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की ओर बॠगये। छत पर पहà¥à¤à¤šà¥‡ तो हवा ठणà¥à¤¢à¥€ और कà¥à¤› तेज थी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने खड़े होकर आसमान की ओर à¤à¤¸à¥‡ देखा, जैसे कà¥à¤› खोज रहे हों।
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