Description
मैंने पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª माà¤à¤à¥€ के रचना – संगà¥à¤°à¤¹ ‘‘रेतीली जिनà¥à¤¦à¤—ी’’ में संकलित कविता – संगà¥à¤°à¤¹ को सदृशà¥à¤¯à¤¤à¤¾ से देखा। सहजानà¥à¤à¥‚तियों की सà¥à¤°à¤à¤¿-वाही हवाओं में विचरण करने वाला यह कवि अपनी रचनाओं में यà¥à¤— संदरà¥à¤à¥‹à¤‚ के साथ है। इस कवि की संवेदना की सशकà¥à¤¤ बाà¤à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी माठनामक पà¥à¤°à¤¥à¤® कविता में माठका सà¥à¤¤à¤µà¤¨ करती है जो इस कवि के अंतस मन से जà¥à¥œà¥€ संवेदना की सूचक है। समà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¨ कवि की सबसे बड़ी योगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है। डिगà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से नहीं कविता संवेदना से लिखी जाती है। हमारे आदि कवि का पà¥à¤°à¤¥à¤® अनà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤ª छनà¥à¤¦ इसका उदाहरण है। पतà¥à¤¥à¤° पर कविता लिखी जा सकती है लेकिन पतà¥à¤¥à¤° हृदय से कविता नहीं लिखी जा सकती। संवेदना का घनतà¥à¤µ पाषाण शिला से अहिलà¥à¤¯à¤¾ को पैदा कर सकता है। किसी कवि की गंध à¤à¥€à¤¨à¥€ रागातà¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾ जब किसी मिटà¥à¤Ÿà¥€ की सतह को छूती है तब धरती पर सोन जूही à¤à¤µà¤‚ हर सिंगारों के जंगल लहराते हैं। परमातà¥à¤®à¤¾ कवि के सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ बोध से यà¥à¤•à¥à¤¤ इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ अनà¥à¤à¥‚तियों को रसरीतिपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने के लिठधरती पर फूलों का जंगल बसाता है। फूल कवि को रिà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हैं। तितलियाठफूलों को रिà¤à¤¾à¤¤à¥€ है और परमातà¥à¤®à¤¾ फूल कवि तितली à¤à¥à¤°à¤®à¤° सबको रिà¤à¤¾à¤¤à¤¾ है। मेरी समठसे पूरा पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ जगत परमातà¥à¤®à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लिखा गया महाकावà¥à¤¯ है। à¤à¤• जà¥à¤—नू जब थोड़ी सी रोशनी लेकर अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ की काली चादर पर रोशनी का सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ चितà¥à¤° बनाता है। तब सà¥à¤¯à¤¾à¤¹ रातें à¤à¥€ सà¥à¤¹à¤¾à¤—िन की तरह उसे अपनी गोद में à¤à¤° लेती हैं। मà¥à¤à¥‡ तो लगता है कि यह जà¥à¤—नू à¤à¥€ अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥€ रात के काले जंगल में रोशनी का अकà¥à¤·à¤° बिछाने वाला à¤à¤• कवि है।"}” data-sheets-userformat=”{"2":15359,"3":{"1":0},"4":{"1":2,"2":9684093},"5":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"6":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"7":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"8":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"9":1,"10":1,"11":3,"12":0,"14":{"1":2,"2":0},"15":"Times New Roman","16":14}”>मैंने पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª माà¤à¤à¥€ के रचना – संगà¥à¤°à¤¹ ‘‘रेतीली जिनà¥à¤¦à¤—ी’’ में संकलित कविता – संगà¥à¤°à¤¹ को सदृशà¥à¤¯à¤¤à¤¾ से देखा। सहजानà¥à¤à¥‚तियों की सà¥à¤°à¤à¤¿-वाही हवाओं में विचरण करने वाला यह कवि अपनी रचनाओं में यà¥à¤— संदरà¥à¤à¥‹à¤‚ के साथ है। इस कवि की संवेदना की सशकà¥à¤¤ बाà¤à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी माठनामक पà¥à¤°à¤¥à¤® कविता में माठका सà¥à¤¤à¤µà¤¨ करती है जो इस कवि के अंतस मन से जà¥à¥œà¥€ संवेदना की सूचक है। समà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¨ कवि की सबसे बड़ी योगà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है। डिगà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से नहीं कविता संवेदना से लिखी जाती है। हमारे आदि कवि का पà¥à¤°à¤¥à¤® अनà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤ª छनà¥à¤¦ इसका उदाहरण है। पतà¥à¤¥à¤° पर कविता लिखी जा सकती है लेकिन पतà¥à¤¥à¤° हृदय से कविता नहीं लिखी जा सकती। संवेदना का घनतà¥à¤µ पाषाण शिला से अहिलà¥à¤¯à¤¾ को पैदा कर सकता है। किसी कवि की गंध à¤à¥€à¤¨à¥€ रागातà¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾ जब किसी मिटà¥à¤Ÿà¥€ की सतह को छूती है तब धरती पर सोन जूही à¤à¤µà¤‚ हर सिंगारों के जंगल लहराते हैं। परमातà¥à¤®à¤¾ कवि के सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ बोध से यà¥à¤•à¥à¤¤ इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ अनà¥à¤à¥‚तियों को रसरीतिपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने के लिठधरती पर फूलों का जंगल बसाता है। फूल कवि को रिà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हैं। तितलियाठफूलों को रिà¤à¤¾à¤¤à¥€ है और परमातà¥à¤®à¤¾ फूल कवि तितली à¤à¥à¤°à¤®à¤° सबको रिà¤à¤¾à¤¤à¤¾ है। मेरी समठसे पूरा पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ जगत परमातà¥à¤®à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लिखा गया महाकावà¥à¤¯ है। à¤à¤• जà¥à¤—नू जब थोड़ी सी रोशनी लेकर अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ की काली चादर पर रोशनी का सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ चितà¥à¤° बनाता है। तब सà¥à¤¯à¤¾à¤¹ रातें à¤à¥€ सà¥à¤¹à¤¾à¤—िन की तरह उसे अपनी गोद में à¤à¤° लेती हैं। मà¥à¤à¥‡ तो लगता है कि यह जà¥à¤—नू à¤à¥€ अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥€ रात के काले जंगल में रोशनी का अकà¥à¤·à¤° बिछाने वाला à¤à¤• कवि है।
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