Description
“काग़ज़ के घर, ये जो ‘क़लम की दावत’ है
लिखा वही जो दिल-दिमाग़ और देश की हालत है”
लेखक ख़à¥à¤¦ à¤à¤• अà¤à¤¿à¤¨à¥‡à¤¤à¤¾ हैं और इनकी कविताà¤à¤ à¤à¥€ अà¤à¤¿à¤¨à¤¯ की तरह हमारे सामने घटित होते हà¥à¤ दिखती हैं। उपमाओं का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—, बिमà¥à¤¬à¥‹à¤‚ का समायोजन, à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में सहजता और इनके कविता कहने का अंदाज़ इतना मोहक है कि हर उमà¥à¤° के पाठकों को अपना दोसà¥à¤¤ बनाता है । इनकी कविताओं में कथा है, संवाद है, चरितà¥à¤° हैं, और कà¥à¤› निरà¥à¤œà¥€à¤µ वसà¥à¤¤à¥à¤à¤ à¤à¥€ इंसानों की à¤à¥‚मिका जी रहे हैं । जिसमें राजनैतिक, सामाजिक जटिलताओं, आम आदमी की पीड़ा और साथ ही ज़मीनी मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤‚ पर लड़ने का तेवर à¤à¥€ है। इतना ही नहीं इस कविता संगà¥à¤°à¤¹ में सामाजिक बिषमताà¤à¤, विडंबनाà¤à¤, संवेदनाà¤à¤ और आपसी संघरà¥à¤· बहà¥à¤¤ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ रूप से दृशà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ होते हà¥à¤ महसूस होता है। मन-मिज़ाज से कलाकार आलोक रंजन की लेखनी में à¤à¤²à¤¾ पà¥à¤¯à¤¾à¤° कैसे छूट सकता है ? à¤à¤¸à¥‡ समठलीजिठजैसे किसी ने आपके हिसà¥à¤¸à¥‡ की डायरी लिख दी हो, जिसमें कà¥à¤› सच है, कà¥à¤› यादें हैं, तो कà¥à¤› अनà¥à¤ªà¤® और अनोखा à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ है । उस पà¥à¤¯à¤¾à¤° का जो ज़िंदगी में अधूरा है मगर कविता में मà¥à¤•à¤®à¥à¤®à¤² । अपने वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• और संवेदनशील पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ के रूप में ये कविता-संगà¥à¤°à¤¹ à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ चितà¥à¤° खींचता है कि पढ़ने वाला उसमें खो जाता है। ‘क़लम की दावत’ ये किताब à¤à¤• साथ कविता, गीत, ग़ज़ल और शे’र की समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ अनà¥à¤à¥‚ति देती है।
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