Description
Rang Mehsoos Hote Hain / Author: Piyush Singh / MRP: 200 / Pages: 124
Description: “रंग महसूस होते हैं” लेखक द्वारा रचित एक ऐसी तस्वीर है जिसमें प्रकृति के तमाम मानवीय एवं सामाजिक रंग संजोए गए हैं। इसमें रंगों का ऐसा तानाबाना बुना गया है जहाँ रंग दिखाई नहीं देते वरन महसूस होते हैं। इस तस्वीर में हर व्यक्ति को अपने हिसाब का रंग महसूस होगा। इसमें कुछ ऐसे चटक और गहरे रंग हैं जो हमारे समाज पर गहरी और तीखी चोट करते हैं। कुछ हल्के फुलके रंग है जो व्यंगात्मक तरीके से एक गंभीर बात कह जाते हैं। कुल मिलाकर “रंग महसूस होते हैं” इस दुनिया के लिए एक दर्पण है जिसमें झाँककर दुनिया को स्वयं में विद्यमान नाना प्रकार के रंग महसूस होने लगते हैं।
Bharat Maa Ki Goud Mein / Author: Subash Chandra Ganguly / MRP: 200 / Pages: 106
Description: ” कवि कथाकार सुभाषचंद्र गांगुली मानवीय सरोकारों और विरल सम्वेदनाओ के अप्रतिम रचनाकार हैं । कहानियों की तरह ही इनकी कविताओं से गुजरना भी एक भिन्न आस्वाद देता है।वह अहिन्दी भाषी रचनाकार होने का अपने तई कोई लाइसेंस नहीं लेते बल्कि कई बार ऐसा उत्कृष्ट लेखन औरहिन्दी का ऐसा विलक्षण प्रयोग करते हैं कि सुखद आश्चर्य से भर जाना होता है । लगता ही नहीं है कि हिंदी इनकी मातृभाषा नहीं है। बांग्ला की तरह हिंदी भाषा भी इनकी काव्यचेतना में सुसज्जित रूप में मिलती है। हिन्दी का आलोक भी इन्होने अपनी आत्मा के आलोक से जोड़ रखा है । इन्होंने हिंदी और बांग्ला भाषा के बीच एक सेतु बना रखा है , जिस पर मुक्त रुप से आवाजाही करते हैं वरन पाठक और भावक मन को यह अवसर भी उपलब्ध कराते हैं कि वह इन भाषाओं की मिठास में भीग सके । उनकी कविताओं में जीवन स्पन्दित होता हुआ सा महसूस होता है । सामाजिक संदर्भ हो या निजी अनुभूति सबको शब्द देकर जैसे वह काल के भाल पर हस्ताक्षर करते हैं । समय मुखरतम रूप में पनाह पाता है । कहानी हो या कविता वह एक योद्धा लेखक के रुप में सामने आते हैं । कविता की गूंज-अनुगूंज को वह पारे की तरह संजोते सहेजते है और फिसल जाने से बचाते हैं। निश्चित ही उनके कविता संग्रह का प्रकाशन एक बड़ी परिघटना है जिसका हिंदी जगत में भरपूर स्वागत होगा,इसका पक्का यकीन है। यश मालवीय 30/06/2022
Bichauliye Shahar / Author: Alok Pandey / MRP: 200 / Pages: 112
Description: आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में, हम सपनों को पूरा करने की दौड़ में इतना मशगूल हो गए हैं, कि ये ध्यान ही नहीं जाता कि आस-पास क्या चल रहा है। दुनिया के शोर-गुल में, ख़ुद को सुनना भूल चुके हैं। मेरी इस क़िताब में, मेरी ज़िंदगी के कुछ वही अनुभव हैं, जिनको मैं दुनिया के इस शोरगुल में भूल गया था, जिनको मैंने ख़ुद से जिया है, देखा है, महसूस किया है और कोशिश की है, जो सामने हो रहा है, उसको सिर्फ़ तमाशबीन की देखता न रहूँ बल्कि कुछ कहूँ भी। इसके अलावा मेरे पिताजी के अंतिम तीन महीने, जो उनकी मृत्यु से पहले के थे, उसमें मैंने ज़िंदगी का सार पाया, उस यात्रा में जो मैंने महसूस किया, वो सब अपनी क़लम के माध्यम से इस संग्रह में बयान करने की कोशिश की है।
Shvaas Ke Chhand / Author: Amitabh Tripathi / MRP: 200 / Pages: 138
Description: अपनी रचनाओं के बारे में इतना ही कहूँगा कि चिंतन में केंद्र से वाम विचारधारा का अनुसरण करते हुए भी मैंने रचनाओं को विचारधारा-निरपेक्ष रखने का प्रयत्न किया है। जिस मन:स्थिति में जो विचार या भावनाएँ उठीं वही रचनाओं में ढल गयीं। मैं सायास वैचारिक चिंतन को कविताओं में आरोपित करने का पक्षपाती नहीं हूँ; जो सहज और स्वाभाविक है वही मेरी रचना में आया है। संवेदना को घटाने-बढ़ाने का उद्योग सचेतन मन से कहीं नहीं हुआ है। कहीं-कहीं तत्सम शब्द यदि अधिक प्रयुक्त हुए हैं तो वे भी सहज रूप से ही आये हैं, किसी विशेष उपक्रम या उद्योग से नहीं। आरम्भ में पारम्परिक गीत हैं, फिर नवगीत हैं और ऐसे भी गीत, जो गीत-नवगीत की अस्पष्ट-सी सीमा पर हैं। अंतत: जैसा भी है यह संग्रह आपके समक्ष है। आवरण चित्र मेरे अनुरोध पर प्रसिद्ध चित्रकार, रंगकर्मी, कवि एवं पत्रकार श्री अजामिल व्यास जी ने तैयार किया है। इसके लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूँ।
Devdar Ka Dukh / Author: Vidhya Bhushan / MRP: 200 / Pages: 62
Description: मैंने सोचा था कि कभी कोई किताब लिखूँ गाए लेकिन पहली ही पुस्तक कविता की होगी ये न सोचा था क्यकि अगर साहित्य के विद्यार्थी के रूप में कहूँ तो कविता लिखना अधिक मुश्किल काम है। अब इस मुश्किल काम को मैं कितना निभा पाया वो तो पाठक ही बताएँगेए फ़िलहाल ये बता दँ कि ये कविताएं चिट्ठियाँ हैं। मुझे तो लगता है सारी ही कविताएं चिट्ठियाँ होती हैं। वो चिट्ठियाँ जो अपने पते पर नही पहुँच पाती हैं। कुबेरनाथ राय ने अपने एक लेख में ऋग्द वे का उद्धरण देते हुए कवि को ष्ऋषिष् कहा है। मेरे ख़याल में कवि के लिए ये सबसे सुंदर शब्द है क्यकि ऋषि दृष्टा होते हैं और कवि भी। कवि होने के लिए सबसे ज़रूरी है कि आप दृष्टा अन्य सभी अहर्ताओंको मैं गौण समझता हूँ। आदमी जब सबसे अधिक भाव विह्वल होता है तब लिखता है कविताएं। हालाकि ज़्ं यादातर कविताएं निजी होती हैं लेकिन उनकी सार्थकता तभी है जब वे सार्वजनिक हो जाए। जब कोई उसे पढ़ते ही कहे कि श्ये तो मेरे मन की बात है।श् सौ पैमाने गढ़ेए पूरा काव्यशास्त्र रच दिया लेकिन इससे कविता का कु छ भी न बदला। मैं मानता हूँकविता परिभाषा की परिधि को अक्सर लाँघ जाती हैए इसलिए जो बात सहज और सुरूचिपूर्ण ढंग से कही गई हो वही कविता है। लयए छंदए रसए प्रवाहए अलंकारए तुकए व्याकरण निस्संदेह किसी कविता के महत्त्वपूर्ण अंग हो सकते हैं लेकिन कविता इससे भी इतर कु छ है। जैसे हाथए पांवए आँखए नाकए कान किसी व्यक्ति के शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग हैं लेकिन वह व्यक्ति इन सबसे अलग कु छ और है। एक आदमी हर एक क्षण बदलता रहता है। उसकी मनःस्थिति भी बदलती रहती है। आप जो घंटे भर पहले थे वो अब नही रहे। ये बात दार्शनिक और वैज्ञानिक दोनो ही रूप से सत्य है और इसी बदलती मनःस्थिति में कविताएं भी फू टती हैं। मेरी कई कविताओ में आपस में मतभेद जान पड गए वह और कु छ नही अलग-अलग मनः स्थितियों के शब्दचित्र हैं और कई बार तो एक ही दृश्य को अलग.अलग फ़्रेम ऑफ रेफरेंस से देखने का प्रयास भी है। आशा है कि मैं जिन दृश्यए घटनाओ ए व्यक्तियो और संस्थानों को इन कविताओं के माध्यम से आप तक ला रहा हूँ, वे कुशलता पूर्वक आपसे संवाद कर सकेंगे।
Casting Chalisa / Author: Kumar Gaurav / MRP: 225 / Pages: 60
Description: Casting Chalisa ( satire Based on Casting System of Bollywood, On the lines of Kabir Das couplet )