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Description

पाँच पुरुषों को वरण करने वाली दी, अपने पतियों के कारण कुरु-सभा में अपमानित हुई, उसके उपरांत भी उसने ‘वरदान’ शब्द में लिपटी दया के माध्यम से उनको दासता से मुक्त करवाया और उनके अस्तित्व, स्वाभिमान और शक्ति की रक्षा के लिए ऊर्जा प्रदान करती वन-वन भटकती रही। पंच-पतियों के प्रति सेवा, भाव, निष्ठा और कर्तव्य-निर्वाह के कारण जहाँ एक ओर सती के आसन पर विराजमान हुई| वहीं पंच-पति वरण के कारण एक युग के पश्चात् भी व्यंग्य, विद्रूप का पात्र बनी रही। विचित्र है उसका जीवन; किन्तु विचित्रता और अंतर्विरोध के बीच वह सदैव विशिष्ट रही। दी, नारी की सशक्त गाथा है। हज़ारों वर्षों से स्त्री, टुकड़ों-टुकड़ों में दी को जी रही है| कहीं वह अपमान और लांछना सहती है, तो कहीं पुरुष के भीतर की ऊर्जा बनती है। कहीं त्याग से उसके उत्थान की सीढ़ी बनती है, तो कहीं पुरुष के अहं के आगे विवश हो जाती है।

Book Details

Weight 500 g
Dimensions 1.3 × 5.5 × 8.5 in
Edition

First

Language

Hindi

Binding

PaperBack

Pages

400

ISBN

9789387390713

Publication Date

2019

Author

Shachi Mishra

Publisher

Redgrab Books

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