Lamha Lamha Soch Raha Hoon

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Description

इन ग़ज़लों से गुज़रते हुए महसूस किया जा सकता है कि यहाँ हिन्दी और उर्दू ग़ज़ल जैसा कोई बँटवारा नहीं है। ये ग़ज़लें अपनी शब्दावली और शैली से ग़ज़ल-विधा के लिए नयी सम्भावनाओं के द्वार खोलती हैं। पूर्वाग्रह-मुक्त रचनाधर्मिता इन ग़ज़लों को समकाल में विशिष्ट स्थान प्रदान करती है।
भारतीय चिन्तन-परम्परा में व्यक्ति के विस्तार का पहला सोपान परिवार को माना जाता है। सौरभ जी की ग़ज़लें इसी ‘परिवार इकाई’ को नये सिरे से परिभाषित और व्याख्यायित करती हैं। अपने सामाजिक सरोकारों, लोकतांत्रिक मूल्यों की जद्दोजहद, आक्रोशित नारों और जीवन के दुर्धर्ष संघर्षों से गुज़रते हुए भी एक ग़ज़लकार किस प्रकार अपने घर-परिवार का प्रतिबिम्बन अपनी रचना में कर सकता है; इसका सबसे अनूठा उदाहरण राजमूर्ति सिंह ‘सौरभ’ हैं। इनके यहाँ परम्परागत भावनाओं का विस्तार है और नवीन भावभूमि का न्यास भी है, जिसे ग़ज़ल के मनभावन-कानन में विचरण करनेवाला कोई भी पहचान सकता है और सुखद अनुभूतियों से विस्मित हो सकता है। इन ग़ज़लों से गुज़रना काव्य के एकदम नवीन गलियारों से गुज़रने का एहसास देता है।

Book Details

Weight 285 g
Dimensions 0.8 × 5.5 × 8.5 in
Edition

First

Language

Hindi

Binding

Paperback

Binding

Pages

228

ISBN

9789391571382

Publication Date

2022

Author

Rajmurti Singh 'Saurabh'

Publisher

Anybook

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