Description
इन ग़ज़लों से गà¥à¥›à¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤ महसूस किया जा सकता है कि यहाठहिनà¥à¤¦à¥€ और उरà¥à¤¦à¥‚ ग़ज़ल जैसा कोई बà¤à¤Ÿà¤µà¤¾à¤°à¤¾ नहीं है। ये ग़ज़लें अपनी शबà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤²à¥€ और शैली से ग़ज़ल-विधा के लिठनयी समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं के दà¥à¤µà¤¾à¤° खोलती हैं। पूरà¥à¤µà¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹-मà¥à¤•à¥à¤¤ रचनाधरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ इन ग़ज़लों को समकाल में विशिषà¥à¤Ÿ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती है।
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ चिनà¥à¤¤à¤¨-परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ में वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के विसà¥à¤¤à¤¾à¤° का पहला सोपान परिवार को माना जाता है। सौरठजी की ग़ज़लें इसी ‘परिवार इकाई’ को नये सिरे से परिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ और वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¤ करती हैं। अपने सामाजिक सरोकारों, लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦, आकà¥à¤°à¥‹à¤¶à¤¿à¤¤ नारों और जीवन के दà¥à¤°à¥à¤§à¤°à¥à¤· संघरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से गà¥à¥›à¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤ à¤à¥€ à¤à¤• ग़ज़लकार किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° अपने घर-परिवार का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¿à¤®à¥à¤¬à¤¨ अपनी रचना में कर सकता है; इसका सबसे अनूठा उदाहरण राजमूरà¥à¤¤à¤¿ सिंह ‘सौरऒ हैं। इनके यहाठपरमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° है और नवीन à¤à¤¾à¤µà¤à¥‚मि का नà¥à¤¯à¤¾à¤¸ à¤à¥€ है, जिसे ग़ज़ल के मनà¤à¤¾à¤µà¤¨-कानन में विचरण करनेवाला कोई à¤à¥€ पहचान सकता है और सà¥à¤–द अनà¥à¤à¥‚तियों से विसà¥à¤®à¤¿à¤¤ हो सकता है। इन ग़ज़लों से गà¥à¥›à¤°à¤¨à¤¾ कावà¥à¤¯ के à¤à¤•à¤¦à¤® नवीन गलियारों से गà¥à¥›à¤°à¤¨à¥‡ का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ देता है।
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