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Description

“जैसे वीणा के तारों पर उँगलियों की थिरकन से ख़नक पैदा होकर मधुर संगीत निकलता है। प्यालों में पड़े जल को एक छड़ी के
सहारे खनकाने से कर्णप्रिय ध्वनि निकलती है। ठीक उसी प्रकार समाज के अनेक अवयव के आपस में टकराने के जो ख़नक
पैदा होती है उसके परिणामस्वरूप जीवन का संगीत निकलता है, ऐसा लेखिका का मानना है। बस शर्त यह होनी चाहिए कि
सभी कुछ अनुशासन से शासित हो। साथ ही साथ अपने अपने स्थान का भी ध्यान रहे और दूसरे के पद प्रतिष्ठा का भी ज्ञान हो।
ख़नक चाहे माँ बेटी के बीच का हो, चाहे सत्ता और समाज के बीच का हो। चाहे धर्म और धार्मिकता के बीच का हो,चाहे
सामाजिक समरस्ता को क़ायम रखने की प्रतिबद्धता के लिए हो। सम्बन्धों की यही सकारात्मक ख़नक ज़िंदगी में रंग भर देती
है। जीवन सुहावना बना देती है।
लेखिका ने अपनी इस किताब की कहानियों में वर्णित काल्पनिक पात्रों की सहायता से पाठकों को बखूबी समझाने का प्रयास
किया है कि वर्षों से चली आ रही रीति रिवाजों और परम्पराओं, जिनका आज कोई औचित्य नहीं रह गया है, उनको ध्वस्त
कर आज के समय के अनुकूल रीति रिवाजों का गठन इस आपसी ख़नक के द्वारा कैसे सम्भव किया जा सकता है। स्वस्थ
सामाजिक वाद विवाद और पारिवारिक वाद विवाद से कैसे सुखद जीवन जीने की राह निकाली जा सकती है ।”

Book Details

Weight 298 g
Dimensions 0.8 × 5.5 × 8.5 in
Edition

First

Language

Hindi

Binding

Paperback

Binding

Pages

238

ISBN

9789391531270

Publication Date

2022

Author

Mridula Srivastava

Publisher

Anjuman Prakashan

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