Description
“जैसे वीणा के तारों पर उà¤à¤—लियों की थिरकन से ख़नक पैदा होकर मधà¥à¤° संगीत निकलता है। पà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ में पड़े जल को à¤à¤• छड़ी के
सहारे खनकाने से करà¥à¤£à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯ धà¥à¤µà¤¨à¤¿ निकलती है। ठीक उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° समाज के अनेक अवयव के आपस में टकराने के जो ख़नक
पैदा होती है उसके परिणामसà¥à¤µà¤°à¥‚प जीवन का संगीत निकलता है, à¤à¤¸à¤¾ लेखिका का मानना है। बस शरà¥à¤¤ यह होनी चाहिठकि
सà¤à¥€ कà¥à¤› अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ से शासित हो। साथ ही साथ अपने अपने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का à¤à¥€ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रहे और दूसरे के पद पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा का à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो।
ख़नक चाहे माठबेटी के बीच का हो, चाहे सतà¥à¤¤à¤¾ और समाज के बीच का हो। चाहे धरà¥à¤® और धारà¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ के बीच का हो,चाहे
सामाजिक समरसà¥à¤¤à¤¾ को क़ायम रखने की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾ के लिठहो। समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥‹à¤‚ की यही सकारातà¥à¤®à¤• ख़नक ज़िंदगी में रंग à¤à¤° देती
है। जीवन सà¥à¤¹à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ बना देती है।
लेखिका ने अपनी इस किताब की कहानियों में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ कालà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤• पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ की सहायता से पाठकों को बखूबी समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸
किया है कि वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से चली आ रही रीति रिवाजों और परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं, जिनका आज कोई औचितà¥à¤¯ नहीं रह गया है, उनको धà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤
कर आज के समय के अनà¥à¤•à¥‚ल रीति रिवाजों का गठन इस आपसी ख़नक के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कैसे समà¥à¤à¤µ किया जा सकता है। सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥
सामाजिक वाद विवाद और पारिवारिक वाद विवाद से कैसे सà¥à¤–द जीवन जीने की राह निकाली जा सकती है ।”
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