Description
इस पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• को ग़ज़ल का ककहरा सीखने वालों के लिठमानक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ कहा जा सकता है। कई संसà¥à¤•à¤°à¤£ तथा हज़ारों की संखà¥à¤¯à¤¾ में बिक चà¥à¤•à¥€ यह किताब विशेषकर देवनागरी में ग़ज़ल कहने वालों के लिठकिसी उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ से कम नहीं है। नठसीखने वालों की तलाश इस पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• पर आकर ख़तà¥à¤® होती है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अब वे सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अपनी ग़ज़लों की इसà¥à¤²à¤¾à¤¹ कर सकते हैं। ग़ज़ल के बारे में देवनागरी में बिखरा-बिखरा बहà¥à¤¤ कà¥à¤› जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मिल जाता है लेकिन बहà¥à¤¤ सी अंदरूनी बातें नहीं मिलतीं जो इस पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• में आ गयी हैं। यह ‘ग़ज़ल की बाबत’ का पेपरबैक संसà¥à¤•à¤°à¤£ है जिसमें सà¤à¥€ मूल पाठों को रखा गया है।.
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