Description
जब किसी सत्तर वर्ष के आदमी का जन्म दिवस धूम धाम से मनाने का निर्णय लिया जाता है तो कई प्रश्न खड़े हो जाते हैं। इस समय धूम धाम का मतलब क्या होगा? इस समय धूम धाम की जरूरत ही क्या है? इस धूम धाम के बाद अगर फिर उसे उपेक्षा की खाई में वापस ही चले जाना है तो इस धूम धाम से अच्छा तो फेसबुक वाला बर्थ डे ही है। हम प्रायः अपने सीमित परिवेश में इन्हीं सब भूल भुलैयों में उलझे रहते हैं जब तक कि जिंदगी हमें और बड़े आयामों के रूबरू नहीं कर देती और तब हम अच्छी तरह समझ जाते हैं कि हमें जो मिला है वह सबसे अच्छा है। उसे स्वीकार करना ही सबसे बड़ा आनंद है।
फिर चाहे हम सीधी गिनती से मोमबत्तियां लगाएं या उल्टी गिनती से, जिंदगी पूरा का पूरा एक धूम धाम ही हो जाती है। सृष्टि का जो विराट खेल जारी है हम उसके हिस्से होकर खेल के मजे में डूब जाते हैं।