Description
Mahoba Ke Rajvansh / MRP: 200 / Pages: 106
Madhyakaleen Mahoba / MRP: 250 / Pages: 194
Alha / MRP: 250 / Pages: 214
Description: आल्हा और महोबा पर लिखी मेरी पिछली तीनों पुस्तक आप सभी को पसंद आयीं और उस पर दो बच्चे पी. एच. डी. भी कर रहे हैं। आप सभी के अनुरोध पर मैं आल्हा-उदल पर यह चौथी पुस्तक आल्हाखंड लोक महाकाव्य लिख रही हूं, यह आल्हा छंद में लिखा गया है। इसे आप आसानी से गाकर पढ़ सकते हैं। अब बाजार में आल्हा गायन की छोटी पुस्तकें दो या तीन लड़ाईयां उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए आप सभी की सुविधा के लिए इसे लिखा गया है। वैसे आल्हा तो जन मानस में आरम्भ से ही प्रचलित रहा है और रहेगा भी। इसे अक्सर बरसात में पढ़ा जाता है। आल्हा अभी भी गांवों में, कस्बों में और कई शहरों में आज भी प्रचलित है। बरसात में इसे अधिकांशतया गाया और सुना जाता है। गांवों में आज भी चौपाल पर आल्हा की स्वर लहरी गूंजती है। यह वीरों की वह दास्तां है, जो अमर जवान ज्योति की तरह हमेशा प्रज्जवलित रहेगी।