Description
मुहब्बत, शोहरत, इज्जत ये सब और न जाने क्या-क्या हम बस माँगते रहते हैं औरों से, हम कीतनी ही अपेक्षाएँ करते हैं गैरों से और इन अपेक्षाओं केपूर्ण न होने पर हर किसी को सुख-दुःख का अनुभव लेना पड़ता है, अद्वैत (तत्वज्ञान ) के अनुसार सब नश्वर है, क्षणिक है, सुख-दुःख भी इस नियम से परे नहीं है! मैंने भी ज़िन्दगी ने दिये अनुभवों को समझने का प्रयास किया, सुख में उल्हसित, तो दुःख में मायूस हुई, ऐसे अप्रिय अनुभव मुझे ही क्यों? ये सवाल मैंने खुदसे ही कई दफे पूछा, खुदके लिए निर्णयों के लिए खुदको बार-बार कोसा, ख़ुदसे ही किये सवाल और ख़ुद कोही दिये जवाबों से जो अन गिनत, अनकही कड़ियाँ सुलझती गयीं, जो मंथन हुआ और उस मंथन से जो ‘नवनीत’ उजागर हुवा वो कोई किताब या और किसी का अर्जित ज्ञान मुझे नहीं दे सकता था, ‘कौन हूँ मैं?’ खुद से किये गये इस प्रश्न का उत्तर आपको और कोई कैसे दे सकता है? वो तो आपको खुद ही को तलाशना पड़ता है, मेरी उसी तलाश का नतीजा ये किताब है! ये मेरे शब्द नहीं,ये मेरा मौन है! जो पाठकों को भी अंतर्मुख करेगा और शायद उनको भी खुद की तलाश की ओर अग्रसर करेगा! हम खुद को ‘तलाश’ पाएँगे तभी खुद को ‘तराश’ पाएँगे!
Reviews
There are no reviews yet.
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.