Description
मà¥à¤¹à¤¬à¥à¤¬à¤¤, शोहरत, इजà¥à¤œà¤¤ ये सब और न जाने कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ हम बस माà¤à¤—ते रहते हैं औरों से, हम कीतनी ही अपेकà¥à¤·à¤¾à¤à¤ करते हैं गैरों से और इन अपेकà¥à¤·à¤¾à¤“ं केपूरà¥à¤£ न होने पर हर किसी को सà¥à¤–-दà¥à¤ƒà¤– का अनà¥à¤à¤µ लेना पड़ता है, अदà¥à¤µà¥ˆà¤¤ (ततà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ ) के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सब नशà¥à¤µà¤° है, कà¥à¤·à¤£à¤¿à¤• है, सà¥à¤–-दà¥à¤ƒà¤– à¤à¥€ इस नियम से परे नहीं है! मैंने à¤à¥€ ज़िनà¥à¤¦à¤—ी ने दिये अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ को समà¤à¤¨à¥‡ का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया, सà¥à¤– में उलà¥à¤¹à¤¸à¤¿à¤¤, तो दà¥à¤ƒà¤– में मायूस हà¥à¤ˆ, à¤à¤¸à¥‡ अपà¥à¤°à¤¿à¤¯ अनà¥à¤à¤µ मà¥à¤à¥‡ ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚? ये सवाल मैंने खà¥à¤¦à¤¸à¥‡ ही कई दफे पूछा, खà¥à¤¦à¤•à¥‡ लिठनिरà¥à¤£à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठखà¥à¤¦à¤•à¥‹ बार-बार कोसा, ख़à¥à¤¦à¤¸à¥‡ ही किये सवाल और ख़à¥à¤¦ कोही दिये जवाबों से जो अन गिनत, अनकही कड़ियाठसà¥à¤²à¤à¤¤à¥€ गयीं, जो मंथन हà¥à¤† और उस मंथन से जो ‘नवनीत’ उजागर हà¥à¤µà¤¾ वो कोई किताब या और किसी का अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मà¥à¤à¥‡ नहीं दे सकता था, ‘कौन हूठमैं?’ खà¥à¤¦ से किये गये इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का उतà¥à¤¤à¤° आपको और कोई कैसे दे सकता है? वो तो आपको खà¥à¤¦ ही को तलाशना पड़ता है, मेरी उसी तलाश का नतीजा ये किताब है! ये मेरे शबà¥à¤¦ नहीं,ये मेरा मौन है! जो पाठकों को à¤à¥€ अंतरà¥à¤®à¥à¤– करेगा और शायद उनको à¤à¥€ खà¥à¤¦ की तलाश की ओर अगà¥à¤°à¤¸à¤° करेगा! हम खà¥à¤¦ को ‘तलाश’ पाà¤à¤à¤—े तà¤à¥€ खà¥à¤¦ को ‘तराश’ पाà¤à¤à¤—े!
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